Tuesday, November 12, 2013

क्यों पीया था शिव ने कालकूट विष?


क्यों  पीया  था  शिव  ने  कालकूट  विष?

देवताओं  और  दानवों  द्वारा  किए  गए  समुद्र  मंथन  से

निकला  विष  भगवान  शंकर  ने  अपने  कण्ठ  में  धारण
किया  था।  विष  के  प्रभाव  से  उनका  कण्ठ  नीला  पड़
गया  और  वे  नीलकण्ठ  के  नाम  से  प्रसिद्ध  हुए।



विद्वानों  का  मत  है  कि  समुद्र  मंथन  एक  प्रतीकात्मक
घटना  है।  समुद्र  मंथन  का  अर्थ  है  अपने  मन  को  मथना,
विचारों  का  मंथन  करना।  मन  में  असंख्य  विचार  और
भावनाएं  होती  हैं  उन्हें  मथकर  निकालना  और  अच्छे
विचारों  को  अपनाना । हम  जब  अपने  मन  से
विचारों  को  निकालेंगे  तो  सबसे  पहले  बुरे  विचार
निकलेंगे।


यही  विष  हैं, विष  बुराइयों  का  प्रतीक  है।  शिव  ने  उसे
अपने  कण्ठ  में  धारण  किया ।  उसे  अपने  ऊपर
हावी  नहीं  होने  दिया।  शिव  का  विष  पान  हमें  यह
संदेश  देता  है  कि  हमें  बुराइयों  को  अपने  ऊपर
हावी  नहीं  होने  देना  चाहिए ।  हमें  बुराइयों  का  हर  कदम
पर  सामना  करना  चाहिए।
शिव  द्वारा  विष  पान हमें  यह  सीख  भी  देता  है
कि  यदि  कोइ  बुराई  पैदा  हो  रही  हो  तो  उसे  दूसरों  तक
नहीं  पहुंचने  देना  चाहिए।
•._.••´¯``•.¸¸.•`  शिव  अनंत `•.¸¸.•´´¯`••._.•
ૐ  Ψ  ॐ  नमः  शिवाय  Ψ ૐ
बोलीए  भक्त  प्रतिपालक  पार्वतीपतये  श्री  शंकर  भगवान  की  जय।
।।ॐ  मैं  तो  केवल  सच्चिदानंद  स्वरुप  कल्याणकारी  शिव  हूँ,
केवल  शिव  "
ऊँ  नमः  शिवाय॥