Monday, September 30, 2013

♥ श्री हनुमान जी के बारे में कुछ गूढ़ बाते ♥



♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
♥ श्री हनुमान जी के बारे में कुछ गूढ़ बाते ♥


♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
♥ श्री हनुमान जी के बारे में कुछ गूढ़ बाते ♥

सीता जी की तलाश में जब श्री राम और लक्ष्मण जंगलो में भटकते -भटकते किष्किन्धा पर्वत के पास घूम रहे थे ! वही पर सुग्रीव अपने भाई बाली के डर से छुप कर रहते थे ! उन्होंने जब इन दोनों भाईयो को इधर आते देखा तो अपने डरपोक स्वभाव वश हनुमान जी से कहा - हनुमान , जरा आप देखो कौन है ? मुझे डर लग रहा है ! लगता है बाली भाईसाहब के भेजे लोग ही हैं ! जाओ और पता लगाओ ! अगर मेरा अनुमान सही हो तो दूर से इशारा कर देना , मैं निकल भागूंगा ! जाओ जल्दी करो !!!!!!!!!!!!!!!

हनुमान तुंरत पर्वत से नीचे आते हैं और दोनों भाईयो से परिचय प्राप्त करते हैं ! जब दोनों तरफ़ से तसल्ली हो जाती है तब हनुमान कहते हैं - हे श्रीराम , मेरे महाराज सुग्रीव , यहाँ अपने भाई के डर से वनवासी जीवन व्यतीत  कर  रहे हैं ! और आपकी तरह ही भार्या के विरह से भी पीडीत हैं ! उनके भाई बाली ने उनकी पत्नी को भी छीन लिया और जान का प्यासा बन कर उनके पीछे पडा है ! आप मेरे साथ ऊपर पर्वत पर उनके पास चलिए ! मैं आप दोनों की मित्रता करवाए देता हूँ सो आप दोनों मिलकर अपने लक्ष्य में सफल हो सकेंगे !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अब श्री राम ने कहा - हनुमान जी , मैं क्यों ऊपर जाऊ ? आपके महाराज सुग्रीव की व्यथा आप ख़ुद ही बखान कर रहे हैं की, वो ये मालुम होते हुए भी, की उनकी पत्नी उनके भाई बाली ने छीन ली और डर से छुप कर यहाँ रह रहे हैं, तो वो बलशाली और वीर पुरूष तो नही ही हैं ! और कायर से दोस्ती करने मैं क्यों ऊपर जाऊं ? अगर उनको दोस्ती ही करनी है तो उन्हें नीचे मेरे पास आना चाहिए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

अब हनुमान ने अत्यन्त सुंदर बात कही - "हे प्रभो . ये जीव तो कभी भी कुछ पकड़ कर छोड़ देता है ! पर आप तो परम ब्रह्म हैं ! अगर आपने एक बार उनका हाथ पकड़ लिया तो फ़िर साथ नही छूटेगा ! महाराज सुग्रीव का क्या ? आज पकड़ लेंगे फ़िर शायद कल छोड़ भी देंगे ! इस करके मैं चाहता हूँ की आप कृपा करकर ऊपर चलिए ! और मेरा मनोरथ पूरा करिए !" श्रीराम हनुमान जी की लच्छेदार बातो में आ गए और ऊपर चलने के लिए तैयार हो गए ! और बोले - हनुमान तुम तो मुझे लक्षमण से भी दुगुने प्रिय हो !

सुनु कपि जिए मानसि जनि ऊना ! तैं मम प्रिय लछमन ते दूना !!

तुम्हारी बात मैं कैसे टाल सकता हूँ ? और चलने के लिए अपने डंड-कमंडल समेटने लगे !!! इधर लक्ष्मण ने सुना तो उनके तन बदन में आग लग गयी ! उन दोनों की बातें सुन कर लगा की उनकी 13 साल की तपस्या भंग हो गई ! अरे दिन रात जंगलो में ख़ाक मैं छान रहा हूँ और मेरे से भी प्रिय ये बन्दर हो गया ? और छोटा मोटा भी नही, सीधे दुगुना प्रिय ! लक्ष्मण की मनोदशा इतनी खराब हो गई की लगा , उन्होंने राम के साथ वनवास में आकर अपनी जिन्दगी खराब कर ली ! लक्ष्मण के तन बदन में आग लग गई ! उनको लगा की अभी भैया राम से पूछे की - यही इनाम दिया मेरी सेवा का ? उनका मन ये सहन नही कर पाया ! मन कह रहा था की अभी लौट चले वापस अयोद्धया को ! उनका अब क्या काम ? अब ये बन्दर महाराज मिल तो गए मुझसे सीधे दुगुने प्रिय ! यही ढूंढ़ लायेंगे सीता भाभी को ! मन हाहाकार करने लगा ! बस मन बगावत करने को तैयार था ! फ़िर सोचा - पहले ये बन्दर हनुमान चला जाए , फ़िर पूछता हूँ और उसके बाद अगला कदम उठाउंगा !लक्ष्मण मन ही मन पूरी तरह बगावत पर उतर आए !!!!!!!!!!!!!

13 साल के वनवासी जीवन के कारण पांवो में छाले पड़े हुए हैं ! श्रीराम सोच रहे हैं हैं ऊपर कैसे चढेंगे ? इतनी खतरनाक और सीधी चढाई पर ! उन दर्रों को कोई बन्दर ही पार कर सकता है ! श्रीराम असल में लक्ष्मण की मन की बात जान चुके थे ! और उन्होंने इसी वक्त उसका निदान करने की वजह से हनुमान जी को ये पीडा मन ही मन बताई ! श्रीराम की बातें जान कर हनुमान बोले - श्रीराम आप और भैया लक्ष्मण मेरे दोनों कांधो पर सवार हो जाईये ! मैं आपको अभी पर्वत शिखर की चोटी पर पहुंचा दूंगा ! और दोनों भाई उनके काँधे पर सवार हो गए ! और हनुमान जी ने जो हैलीकोप्टर की तरह सीधे उपर की तरफ़ ९० डिग्री पर उठना शुरू किया तो लक्ष्मण दंग रह गए ! और देखते ही देखते उनको किष्किन्धा पर्वत की चोटी पर पहुंचा दिया !!!!!!!!!!!



लक्ष्मण ने सोचा , मैं तो सिर्फ़ शेषनाग हूँ जो अपने फन पर पृथ्वी का भार उठाये हूँ ! और ये कौन है ? जो मुझ शेषनाग सहित नारायण ( श्रीराम ) को भी अपने कंधे पर धारण कर लिया ! और इस तरीके से कोई साधारण मनुष्य या बन्दर तो नही कर सकता ? भैया सही कह रहे थे ! ये तो मुझसे भी दुगुना प्रिय होगा ही ! मैं सिर्फ़ पृथ्वी का बोझ धारण करता हूँ और ये तो मुझ शेषनाग सहित नारायण का बोझ भी धारण करता है ! तो उनका मन हनुमान के प्रति अनुराग से भर गया !!!!!!!!!!!!!

उनका बगावत करने का विचार तो काफूर हो गया और नई खट खट दिमाग में शुरू हो गई की ये मुझसे भी बलशाली कौन है जो यहाँ बन्दर रूप में बैठा है ? ऊपर पर्वत पर पहुँच कर लक्ष्मण जी ने अपनी जिज्ञासा हनुमान जी के समक्ष रखी ! उन्होंने पूछा की - आप यहाँ क्या कर रहे हैं और कौन हैं ? और आप इतने बलशाली हो कर भी ये कायर की तरह छिपे सुग्रीव को महाराज महाराज संबोधित कर रहे हैं ? मुझे समझ नही आ रहा है की आप इनकी सेवा चाकरी क्यो कर रहे हैं ! जबकि आप तो स्वयम महाराज बनने के हर तरह से काबिल हैं ! हे वानर श्रेष्ठ आप मेरी जिज्ञासा शांत कीजिये !!!!!!!!!!!!!!

बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय ..
जय बजरंगी .जय श्री राम...

संकलन कर्ता..शंकर डंग

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